नई दिल्ली- मणिपुर की तस्वीरों को देखकर दिमाग शून्य हो जाता है। यकीन नहीं आता कि यह तस्वीरें उसी आजाद भारत की है। जिस पर हम गर्व करते हैं। उसी भारत की जिसे हम फिर से विश्व गुरु बनाने का ख्वाब पाले बैठे हैं। समझ में नहीं आता कि यह किस मिट्टी के बने हुए लोग हैं।
वह द्वापर युग था यह कलयुग है वह महाभारत था यह आज का भारत है। इज्जत तार-तार वहां भी हुई थी। इज्जत नीलाम यहां भी हुई है। तमाशा वहां भी बना था तमाशा बिन यहां भी है। तब भरी सभा में दुशासन द्रौपदी को बाल से पकड़कर घसीटते हुए ले कर आया था। और आज की द्रोपदी को बिसियो दुशासनो ने खुलेआम निर्वस्त्र कर सबकी आंखों के सामने घसीटा है। उस सभा में जब द्रोपदी का अपमान हो रहा था तो भीष्म पितामह द्रोणाचार्य और विदुर जैसी महान हस्तियां अपना कर्तव्य भूलकर मूकदर्शक बन बैठी थी। और आज के हुक्मरान इतना सब कुछ होने के बावजूद सिर्फ और सिर्फ बातें बना रहे।
सच पूछिए, तो महाभारत और आज के भारत का असली फर्क तो यही है तब द्रोपदी के बुलाने पर श्री कृष्ण तो आ गए, लेकिन रोती बिलखती इज्जत की भीख मांगती मणिपुर की बेटियों के लिए कोई भी देवदूत बनकर नहीं आया।
सुनो द्रोपदी, शस्त्र उठा लो अब गोविंदा ना आएंगे,
छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो,
धुर्त बिछाए बैठे शकुनी, मस्तक तक बिक जायेंगे,
सुनो द्रोपदी, शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयेंगे।
कवि पुष्यमित्र उपाध्याय की यह कविता आज शायद आज के इस माहौल में मणिपुर के उन तस्वीरों पर सबसे ज्यादा मौजूद है सचमुच अगर सब कुछ देखते हुए सत्ता और शासन अपनी आंखें मूंद ले इंसाफ और कार्यवाही की बात तो करें लेकिन धरातल पर कुछ नजर ना आए। तो फिर लाचार की और ना उमीदी का पैदा होना तो लाजमी है। दिल कचोटना है मन सवाल पूछता है कि इंसाफ फाखिर करे तो क्या करें।
मणिपुर की तस्वीरों को देखकर दिमाग सुन्न हो जाता है यकीन नहीं आता कि यह तस्वीरें उसी आजाद भारत की है जिस पर हम गर्व करते हैं उसी भारत की हैं जिस भारत को हम विश्व गुरु बनाने का ख्वाब पाले बैठे हैं समझ में नहीं आता कि यह किस मिट्टी के बने हुए लोग हैं जिन्होंने अपनी सोच अपनी विवेक और अपनी बुद्धि से जाने कैसे भर पा लिया है यह जो कुछ कर रहे हैं वैसा तो जानवर भी नहीं करते शहर हो अकेली हो मैं रहने जाने वाले लोग अक्सर सभ्यता और सब होने का ढोंग करते हुए दूसरों को कबीलाई बात कर मुहबिरो करते हैं। अक्सर लोगों की एहसास एक बेहतरीन का यही जुल्मा होता है लेकिन अगर यही तस्वीरें वाकई काबिल ओ में रहने वाले लोगों की निगाहों से गुजर जाए तो शायद वह भी हमसे पूछ लेंगे बताओ जब भी कौन है। और बर्बर कौन है।
सोशल मीडिया पर वायरल वह वीडियो सुंदर नार्थ के मणिपुर सुबे से आया है। वह भी मणिपुर के नोबेल जिले के 9 मई इलाके से जातीय संघर्ष की आग में जल रहे इस इलाके के लोग दुश्मन से पाई पाई का हिसाब लगाने के लिए तब इंसान से भेड़िया बन गए। उन्हें तो इसका एहसास ही नहीं रहा वरना क्यों कर यह सड़क को नौजवानो जिन्हें मणिपुर की इन बेटियों की आबरू बेचने के लिए अपनी जान पर खेल जाना था। उन्होंने खुद ही अपने हाथों से उन लड़कियों से आबरू तार-तार कर डाली आज जज्बात बहुत है। मगर अल्फाज कम पड़ रहे हैं।
बुधवार यानी 19 जुलाई को सोशल मीडिया पर 21 सेकंड का एक वीडियो क्लिप अचानक करने लगा। और फिर धीरे-धीरे यह कुछ इतनी तेजी से वायरल होता है कि अगले चंद घंटों में सोशल मीडिया पर एक्टिव तकरीबन हर किसी के मोबाइल फोन में होता है तस्वीरें दिल को दहला देने वाली आंखों पर यकीन नहीं करने वाली है।