नई दिल्ली- पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिस्सा का एक लंबा इतिहास रहा है। जो केवल चुनाव से पहले और बाद की अवधि तक ही सीमित नहीं है लेकिन यह हिस्सा की वजह क्या है। क्या देश के बाकी राज्यों में भी यही स्थिति है।
हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव में हिंसा की खबरें आई है। हर चुनाव में लगातार होती हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल चुनावी हिंसा में बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से आगे निकल रहा है। एक समय था। जब बिहार में चुनावी हिंसा और बूथ कैपचरिंग बड़े पैमाने पर हुआ करता था। बिहार में बड़े पैमाने पर हिंसक चुनाव 1995 में हुआ था उस समय लालू यादव सत्ता में थे।
ममता बनर्जी की टीएमसी ने 2011 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीता इसके बाद से वह लगातार सत्ता में है। आज उसकी पार्टी के 220 से ज्यादा विधायक हैं। 2021 के राज्य चुनावों के बाद से केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी की ताकत 70 है। हाल ही में हुए। पंचायत चुनावों में बंगाल में जबर्दस्त हिंसा हुई। जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। विपक्षी टीमों की ओर से चुनावी कदाचार के आरोप ना केवल मतदान के दिन लगे बल्कि मतगणना के दौरान व्यापक हिंसा से प्रभावित रही है। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मरने वालों की संख्या 19 बताई थी।
स्वतंत्र निष्पक्ष और हिंसा मुख्य चुनाव कराने में नाकामयाब रहने वाले बंगाल राज्य चुनाव आयोग को न केवल राज्य सरकार और विपक्षी दलों बल्कि राज्यपाल और कोलकाता उच्च न्यायालय में भी फटकार लगाई गई। चुनाव आयोग में 696 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान कराना पड़ा और मतगणना पूरी होने के बाद भी हावड़ा हुगली और उत्तर प्रदेश 24 परगना जिले में 20 और मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का आदेश दिया।
राजनीतिक जानकारों का कहना है। कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास आजादी से पहले का भी है लेकिन बाद में हालात बदले तो यूपी-बिहार इस मामले में अव्वल हो गए। अब एक बार फिर बंगाल राजनीतिक हिंसा का शिकार हो रहा है। बंगाल की तुलना में बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बाहुबली और माफिया सिंडीकेट होते हुए भी राजनीतिक हिंसा कम है।
राजनीतिक रूप से दो विकृत बंगाल में प्रत्येक पार्टी के कैडर प्रतिद्वंदी दलों में अपने खिलाफ मैदान में उतारे नेता को अपना दुश्मन या बाहर ही आदमी मानते हैं। प्रत्येक पार्टी का खेमे में इस बात का जिक्र करता है। कि अंदर प्रतिद्वंदी पार्टी सत्ता में आती है। तो वह हिंसा को बढ़ावा देती है। इसके अलावा बेरोजगार युवाओं को ज्यादातर राजनीतिक दल अपने सैनिकों के रूप में तैनात करते हैं। ताकि प्रतिद्वंदी पार्टी कार्यकर्ताओं पर हमला किया जा सके। और उन्हें डराया जा सके। अपनी सुरक्षा के लिए ग्रामीण पार्टी कार्यकर्ता प्रतिद्वंदी पार्टी कार्यकर्ताओं को कभी-कभी हिंसक के रूप में नीचे देखता है।
अंत में प्रतिशोध या बदला लेने के लिए पार्टी को भय और क्रोध की राजनीति अपनानी पड़ती है।
खास तौर से ग्रामीण बंगाल में राजनीतिक प्रभुत्व के मुद्दों को ना केवल राजनीतिक दलों के लिए बल्कि आम आदमी पार्टी समर्थकों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस वजह से चुनाव में जमकर हिंसा होती है।