Bastar Review: नक्सलवाद की जमीनी हकीकत पर बनी फिल्म, कमजोर दिल वाले ना देखें ‘बस्तर’, झकझोर देने वाली कहानी

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Priyanka Singh

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका और वहां सक्रिय नक्सलवादियों (The Naxal Story) की कहानी पिछले कई दशकों से चर्चाओं में रहती है, मगर आम लोगों तक इसकी बहुत कम जानकारी पहुंच पाती है।

इसी विषय पर फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ (Bastar Review) लेकर आए हैं निर्देशक सुदीप्त सेन. अपनी पिछली फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ की सफलता के बाद वो इस बार दर्शकों को नक्सलवाद की जमीनी हकीकत से रूबरू कराने की कोशिश कर रहे हैं.

कहानी का दमदार आगाज, मगर पटकथा में कमी

फिल्म की शुरुआत बस्तर के आदिवासी इलाके में तिरंगे के सामने ग्रामीणों द्वारा राष्ट्रगान गाते हुए होती है। गुस्से से भरे नक्सली न सिर्फ तिरंगे की जगह लाल झंडा फहरा देते हैं, बल्कि राष्ट्रगान गाने की “जुराअत” करने वाले ग्रामीण की बेरहमी से हत्या भी कर देते हैं। साथ ही, इस ग्रामीण के परिवार को भी उनके गुस्से का शिकार होना पड़ता है।

एक माँ का संघर्ष और एक पुलिस अफसर की चुनौती

हत्याकांड से बिखरे परिवार में बेटे को नक्सलियों के चंगुल से निकालने की जिम्मेदारी फिल्म में आईजी नीरजा माधवन (अदा शर्मा) लेती हैं। वो पत्नी को पति के हत्यारों को सजा दिलाने का वादा करती हैं और बेटे को वापस लाने का रास्ता भी दिखाती हैं।

नीरजा माधवन के दो मोर्चे

एक तरफ नीरजा नक्सलवाद की कमर तोड़ने में जुटी हैं, तो दूसरी तरफ उनके इस अभियान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी चल रही है. खुद कई महीनों की गर्भवती होने के बावजूद नीरजा नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई जारी रखती हैं। आखिरकार उन्हें एक बड़े नक्सली सरगना को पकड़ने में सफलता भी मिलती है।

जहां निर्देशक सुदीप्त सेन की पिछली फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ ने दर्शकों को चौंका दिया था, वहीं इस बार दर्शकों को नक्सलवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर बनी फिल्म “बस्तर: द नक्सल स्टोरी” से ज्यादा उम्मीदें थीं। फिल्म महिला पुलिस अधिकारी को केंद्र में रखते हुए नक्सलवाद की ख़तरनाक सच्चाई को सामने लाने की ईमानदार कोशिश करती है.

साथ ही, शहरी इलाकों में मौजूद नक्सल समर्थकों के चेहरे भी उजागर करने का प्रयास किया गया है। लेकिन कमजोर कहानी और पटकथा के चलते फिल्म दर्शकों पर कोई खास प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब रहती है।

कहानी में कमी, अभिनय में दम

फिल्म शुरूआत से ही दर्शकों को बांध नहीं पाती है. वहीं, दूसरे हाफ में भी कहानी उतना जोरदार असर नहीं छोड़ पाती है. खासकर फिल्म का क्लाइमैक्स भी कुछ खास प्रभावी नहीं है. हालांकि, निर्देशक ने नक्सलियों की क्रूरता को दर्शाने के लिए काफी हिंसक दृश्य दिखाए हैं, जिसके कारण सेंसर बोर्ड ने फिल्म को ए सर्टिफिकेट दिया है.

अभिनय की बात करें तो अदा शर्मा ने दमदार भूमिका निभाई है। बाकी कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों के अनुसार काम किया है।

अंतिम विचार

कुल मिलाकर, “बस्तर: द नक्सल स्टोरी” एक गंभीर विषय पर बनी फिल्म है, जो नक्सलवाद की जमीनी हकीकत को दिखाने का प्रयास करती है। हालांकि, कमजोर कहानी और पटकथा फिल्म को दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ने में अड़

Priyanka Singh के बारे में
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Priyanka Singh 8 साल से मीडिया क्षेत्र से जुड़ी प्रियंका सिंह इस समय Timesbull.com को अपने कार्यों से योगदान दे रही हैं। जिसमें इन्होंने (क्राइम, देश-विदेश,शिक्षा,लाइफस्टाइल,मनोरंजन,गैजेट्स इत्यादि) बीट पर काम किया। इनके लेखनी को Timesbull.com पाठकों ने काफी पसंद भी किया। एक छोटे संस्थान से शुरुआत करने वाली प्रियंका सिंह अपने करियर में साल 2016 में राजस्थान पत्रिका से जुड़ी। इन्होंने 2 साल तक राजस्थान पत्रिका को अपनी सेवा प्रदान की। तत्पश्चात इनका सफर 2018 में इंडिया डॉट कॉम की तरफ बढ़ चला। यहां प्रियंका सिंह ने लेखनी के साथ - साथ वीडियो कार्य क्षेत्र में भी कार्य किया। फिर इनका सफर आगे बढ़ा 2021 की तरफ, जहां इन्होंने न्यूज 24 डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ काम शुरू किया। फिर प्रियंका सिंह Timesbull.com के साथ जुड़ी। प्रियंका ने हर बीट से जुड़े कंटेट पर काम किया है। Read More
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