नई दिल्लीः दौड़ती भागती दुनिया में ट्रेन के ऐसा माध्यम है, जिसकी सवारी करना हर कोई पसंद करता है। अगर आप कहीं लंबर टूर पर जाते हैं तो महीने पहले ट्रेन का का टिकट करा लेते हैं, जिससे आपको किसी दिक्कत का सामना ना करना पड़े। ट्रेन की बदौलत ही इंसान आराम से अपनी नियत दूरी तय करता है, जिसे बिना झटके की सवारी भी माना जाता है।
सरकार भी लोगों की सहूलियत के लिए ट्रेनों की संख्या और ट्रैक हर साल बढ़ा रही है। ऐसे में आपको रेल की कुछ रहस्यों को जानना जरूरी है, जिससे की आप यात्रा करें तो चंद पलों में उसका मतलब समझ जाए। आप जानते ही होंगे कि ट्रेन के ट्रैक पर रह जगह नुकीले पत्थर पड़े होते हैं, क्या आपको इसकी वजह पता है। आपको नहीं पता तो टेंशन बिल्कुल ना लें, क्योंकि आज हम जो बताने जा रहे हैं, उसे जानकर आपका आप हैरान रह जाएंगे।
दरअसल रेल की पटरी के नीचे कंक्रीट के बने प्लेट होते हैं। इन्हें हम स्लीपर कहते हैं। इन स्लीपर के नीचे पत्थर यानि गिट्टी होती है, जिसे इसे बलास्ट बोला जाता है। इतना ही नहीं इसके नीचे अलग अलग तरह की दो लेयर में मिट्टी रहती है। इन सबके नीचे नार्मल जमीन होती है। रेलवे ट्रैक जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर दिए जाते हैं। पटरी के नीचे कंक्रीट के बने स्लीपर, फिर पत्थर और इसके नीचे मिट्टी रहती है। इन सभी चीजों के कारण ट्रैक साधारण जमीन से थोड़ा ऊंचाई पर रहता है।
- जानिए कैसे बिछाए जाते हैं नुकीले पत्थर
रेलवे ट्रैक पर बिछाई जाने वाली गिट्टी खास तरह की होती है, जो गाड़ी गुजरने के दौरा अहम भूमिका निभाती है। इसके स्थान पर गोल पत्थरों का प्रयोग किया जाए तो वे एक दूसरे से फिसलने लगेंगे और पटरी अपनी जगह से दूर हो जाएगी। ये नुकीले होने के कारण एक दूसरे में मजबूत पकड़ बनाते हैं। यह ट्रेन पटरी से गुजरती है, तो ये पत्थर आसानी से ट्रेन के वजन को संभाल पाते हैं।
- जानिए इस मिट्टा का जरूरी काम
ट्रेन का वजन करीब 10 लाख किलो तक रहता है, जिसे सुनकर आप तौबा जरूरी कर रहे होंगे। इस वजन को सिर्फ पटरी नहीं संभाल सकती। इतनी भारी ट्रेन के वजन को संभालने में लोहे के बने ट्रैक के साथ कंक्रीट के बने स्लीपर तथा पत्थर सहायता करते हैं। इसमें सबसे ज्यादा वजन इन पत्थरों पर ही रहता है। इन पत्थरों के चलते ही कंक्रीट के बने स्लीपर अपनी जगह से नहीं हिलते हैं।