Viral News: यह होली का त्योहार है और जब चारों दिशाएं इस रंग में रंग जाती हैं तो याद आता है कि इस त्योहार का कारण भी किसी की करुण पुकार है। एक बच्चे की चीख जो महज़ 11 या 12 साल की रही होगी. उसका नाम प्रह्लाद था. वह एक राक्षस के रूप में पैदा हुआ था।
एक कबीला जिसकी एकमात्र वंशानुगत परंपराएँ विष्णु के विरुद्ध विद्रोह, देवताओं से ईर्ष्या, मानवता से घृणा और अच्छे कर्मों से बचना थीं। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद का पिता था।
हिरण्यकश्प ने ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि उसे कोई इंसान न मार सके, कोई जानवर न मार सके, कोई उसे रात या दिन में न मार सके, कोई उसे घर के अंदर या बाहर न मार सके। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी मांग की कि उनकी मृत्यु न तो धरती पर हो, न स्वर्ग में, न ही किसी अस्त्र-शस्त्र से।
जब प्रह्लाद का जन्म हिरण्यकश्यप के घर हुआ तो वह बचपन से ही विष्णु भक्त हो गया। यह कथा भागवत पुराण के सातवें अध्याय में बताई गई है। हिरण्यकशिपु और उसके पुत्र प्रह्लाद की यह कहानी न केवल एक धार्मिक गाथा है, बल्कि इसमें निहित निस्वार्थ भक्ति और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश आज के संकटग्रस्त समाज को ईश्वर की उपस्थिति और उसके न्याय के प्रति और अधिक आश्वस्त करता है।