नई दिल्ली- आज 19 साल के बाद स्पेशल सावन का महीना आया ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार सावन 30 दिनों का नहीं बल्कि 59 दिनों का है। कांवड़ियों को अपने आराध्य को पूजने का मौका मिलेगा। यूपी में 1990 के राम मंदिर आंदोलन के बाद कावड़ यात्रा जो पॉपुलर हुई 1 साल दर साल बढ़ती चली गई इस वक्त यूपी के करीब 2 करोड़ लोग कावड़ लेकर शिव का जलाभिषेक करने के लिए जाने वाले हैं।
कावड़ को लेकर आपके मन में तमाम सवाल उठ रहे होंगे। जैसे इसकी शुरुआत किसने की वह कहां से कहां तक काजल लेकर गए। कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती हैं। यात्रा के दौरान क्या नियम है। अब तक इसका स्वरूप कितना बदल गया है। कुल कितने करोड़ का कारोबार हुआ है। ऐसा ही तमाम सवाल आपके मन में गुजरे होंगे तो चलिए एक-एक कर हम हर एक सवाल का जवाब आपको देते हैं।
4 लोग माने जाते हैं पहले कावड़िया
परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया। हापुर से गढ़मुक्तेश्वर में कावड़ लेकर गंगाजल लेने पहुंचे। बागपत के पुरा महादेव मंदिर में शिवलिंग पर जलाभिषेक किया। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान में नाम बृजघाट हो गया है।
श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता के साथ हिमाचल के ऊना में थे। माता-पिता ने मायापुरी यानी हरिद्वार में गंगा स्नान करने की बात कही। श्रवण कुमार माता पिता की इच्छा पूर्ति के लिए हरिद्वार गए। कावड़ की शुरुआत यहीं से मानी जाती है।
राम ने देवघर तक रावण ने बागपत तक की कावड़ यात्रा
राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के उद्धार के लिए भागीरथी सुल्तानगंज से गंगाजल लेने निकले। सुल्तानगंज के गैबी नाथ में गंगा की तेज धारा से ऋषि की तपस्या भंग हो गई। क्रोधित ऋषि पूरी गंगा को पी गए। भागीरथी की विनती पर ऋषि ने जंग को चीरकर गंगा को बाहर निकाला। यहां श्रीराम ने जल भरकर देवघर में जलाभिषेक किया।
रावण ने सूरज जिले के पिंजरात गांव के पास शिरसागर में समुद्र मंथन हुआ। समुद्र मंथन से निकले विष को शिव ने पिया। इसलिए भगवान शिव का कन्नील नाम पड़ा। विश्व का असर खत्म करने के लिए शिव भक्त रावण ने तपस्या की। रावण ने हरिद्वार से जल लेकर बागपत के पुरा महादेव में चढ़ाया गया था।
अब आपको बताते हैं कांवड़ यात्रा के 5 तरीके
कावड़ यात्रा में बिना जूता चप्पल के यात्रा भक्त करते है। घटने पर आराम के लिए बैठ सकते हैं। कांवड़ जमीन मैं नहीं रख सकते और ना ही जमीन में छूना चाहिए इसलिए स्टैंड पर रखते हैं। दोबारा चलने पर कावड़ के सामने उठक बैठक करते हैं। इस यात्रा में लोग खड़ी कावड़ लेकर चलते हैं इसमें कावड़ियों के साथ एक सहयोगी चलता है। आराम के वक्त सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कावड़ रखता है सहयोगी को कावड़ लगातार हिलाता चुराता रहना चाहिए। आराम करते वक्त कावड़ जमीन पर नहीं रखते बांस से झूले के आकार की कावड़ बनाई जाती है। गंगा जल से भरे पात्र दोनों तरफ बराबरी से लटके होते हैं। ऐसे में कावड़ किसी ऊंची जगह टांग दी जाती है।
कावड़ यात्रा का बदलता स्वरूप
पहले कावड़ यात्रा के लिए घर से सत्तू और चने लेकर चलते थे। एक कावड़ के साथ दो लोग होते थे। एक से होता तो दूसरा कावड़ लेकर खड़ा रहता था। लाउडस्पीकर का कोई परंपरा नहीं थी। और अब यात्री सत्तू के बजाय फल और भोजन करने लगे स्टाइलिश कवर बनाने लगी रंगीन फूल और लाइट लगी होती है। अधिकतर भक्त बड़े-बड़े जत्थे में जाते हैं। यात्रा के दौरान डीजे और लाउडस्पीकर के साथ बाजा बजता रहता है।