मैं हिंदू हूं..मोहर्रम के दिन मातम मनाता हूं, रजनीश का परिवार 143 साल से रख रहा ताजिया

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नई दिल्ली- लखनऊ के बशीर गंज में रजनी धनुष कपड़े का कारोबार करता है रजनीश कहते हैं मेरे तीन भाई पंकज मनीष आशीष और बहन नंदिनी है। बहन भी मुहर्रम के मौके पर घर आ जाती है। पिता हरिश्चंद्र धान उसका 5 मई 2021 को निधन हुआ। वैसे तो लंबे समय से ताजिया रखी जा रही है। लेकिन पिता ने इसकी बढ़ोतरी करके सभी हिंदू ताजियादारी को अपने साथ जोड़ा हिंदू ताजिया दार सेवक संघ बनाया सभी किस्मों खिलाफ इमामबाड़े में शामिल होते हैं।

हिंदू होते हुए भी ताजिया रखने की परंपरा रजनीश करते सबकी अपनी मान्यताएं हैं लोग अपनी मान्यता मनाते जो पूरी होती। फिर आते जबसे ताजिया रख रहे हैं। तब से आज तक कोई दिक्कत नहीं हुई। हिंदू मुस्लिम दोनों आज आधार शामिल होते हमारी जो गंगा जमुना तहजीब है। इसकी वजह से कभी लखनऊ में दंगे नहीं हुए जो अच्छी शक्तियां होती हैं। वहां कभी गलत नहीं होते है।

हमारा शहर पढ़े लिखो का शहर है हम पूरे देश को बस यही संदेश देते हैं कि हमारी सभ्यता को देखकर दिल में गलतफहमी ना पाले दोनों समुदाय एक दूसरे के धर्म का सम्मान करेंगे तो आपको भी अपने धर्म का सम्मान मिलेगा।

रजनीश धनुष ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि ताजिया रखते तो 43 साल हो गए। लेकिन आज तक किसी हिंदू या मुस्लिम भाई ने विरोध नहीं किया बल्कि सब इसमें हिस्सा लेते हैं।

रजनीश के परिवार के मुताबिक हमारे घोष में उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा मंत्री मोहसिन राजा लखनऊ के नवाब जफर मीर अब्दुल्लाह सहित कई सम्मानित लोग आज के इस परंपरा को हमने इसलिए आगे बढ़ाया। कि सभी धर्मों को एक साथ एकत्रित किया जा सके लखनऊ में उसे देश में एकता का पैगाम जाए। जिससे हमारे पिता स्वर्गीय हरिशचंद का बहुत बड़ा योगदान है।

भाई पंकज धनुष बताते हैं। टीवी पर हिंदू मुस्लिम डिबेट पर हम कभी प्रभाव नहीं पड़ने देंगे इन सब चीजों पर सिर्फ माहौल को खराब किया जा रहा है ऐसा होना नहीं चाहिए जबकि मैं जिस घर से हूं। जो इंसानियत पैगाम देता है। इमामबाड़ा खिलाफ से बहुत सी चीजें निकल कर सामने आती है यहां से सही संदेश जाए जो रंजीत से हैं। इन्हें खत्म किया जाए इस ताजिए से यह पैगाम देना है। कि सभी लोग भाईचारे से रहे इमाम हुसैन ने जो शहादत दी उसे लोग समझे हमारे इलाके में सभी भाईचारे से रहते हैं। कभी किसी ने कोई विरोध नहीं किया बल्कि हमेशा साथ दिया है।

मोहम्मद अब्दुल हुसैन कहते हैं। इमाम हुसैन ने मालवीय मूल्यों की रक्षा की थी। मुस्लिम शासक व्याधि धर्म के नाम पर जनता के साथ दुर्व्यवहार कर रहा था। जनता में विरोध करने का साहस नहीं था इमाम हुसैन उसके खिलाफ खड़े हुए थे।

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