होली का त्योहार बस आने ही वाला है। इस बार 25 मार्च को फाल्गुन मास की पूर्णिमा पड़ रही है। इस दिन देश ही नहीं, विदेश में बसे हिंदू भी रंगबिरंगी होली में सराबोर हो जाएंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि होली की उत्पत्ति जिस मथुरा और वृंदावन से शुरू हुई थी, वहा फाल्गुन या फागुन के शुक्ल पक्ष चढ़ते ही फूलों की होली शुरू हो जाती है। इसे फुलेरा दूज (Phulera Dooj) कहते हैं। फुलेरा दूज का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा होती है।
12 मार्च को पड़ेगा फुलेरा दूज
इस वर्ष फुलेरा दूज 12 मार्च को पड़ेगा। हालांकि फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 11 मार्च सोमवार को आरंभ होगी, लेकिन उदया तिथि 12 मार्च को मिलेगी। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने फुलेरा दूज के दिन से ही फूलों की होली खेलने की शुरुआत की थी। इसी मान्यता के अनुसार मथुरा और वृंदावन में फुलेरा दूज मनाया जाता है। इसमें फूलों की होली खेली जाती है।
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फुलेरा दूज में होते मांगलिक कार्य
ब्रज क्षेत्र में के दिन शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य भी होते हैं, क्योंकि धार्मिक मान्यता के अनुसार यह दिन समस्त दोषों से मुक्त होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों में आकर्षक झांकी निकाली जाती हैं। उस दिन मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
बरसाने मे होती लट्ठमार होली
होली का त्योहार पूरे देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। इसमें ब्रज क्षेत्र के बरसाने की लट्ठमार होली खेली जाती है। यह उत्सव भी भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। यहां आसपास के पुरुष महिलाओं से होली खेलने आते हैं, तो महिलाएं लाठी से पुरुषों को भगाने या खदेड़ने के लिए टोली बनाकर निकलती हैं। पुरुष भी बांस की टोकरी या विशेष टोपी से अपने सिर का बचाव करते हैं। इसी बीच महिलाएं पुरुषों पर रंग भी उड़ेलती हैं, जिसका आनंद सभी लोग लेते हैं। बरसाने की लट्ठमार होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।