ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल पांच तरह की दशा का बोध होता है। जिन्हें महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा एवं प्राण दशा के रूप में जानते हैं। सूक्ष्म दशा और प्राण दशा का प्रयोग ज्योतिषी द्वारा तब किया जाता जब व्यक्ति के जन्म का समय बिल्कुल सटीक हो अर्थात एकदम सही हो, अन्यथा इन दोनों दशा को नहीं देखा जाता है।
वहीं महादशा, अंतर्दशा एवं प्रत्यंतर दशा को देखकर किसी व्यक्ति के जीवन में क्या प्रभाव हो रहा है यह पता लगाया जाता है। सबसे पहले यह समझते हैं कि दशा है क्या ? दशा अर्थात समय, किसी भी व्यक्ति की हर समय कोई न कोई दशा चल रही होती है मतलब समय चल रहा होता है। अब बात करें महादशा की तो महादशा एक लंबे समय तक चलने वाली दशा होती है, वहीं अंतर्दशा कुछ महीने या कुछ साल तक चलती है और प्रत्यंतर दशा कुछ हफ्ते या कुछ महीनों तक रहती हैं।
इसे यदि आसान शब्दों में समझे तो महादशा को एक राजा की तरह मान लेते हैं जो जो एक लंबे अंतराल तक रहता है। अब यह कहें कि राजा प्रजा के लिए अच्छा है या बुरा उसके हिसाब से फल देगा, लेकिन क्या एक लंबे समय तक एक ही जैसा परिणाम रहता है, तो जवाब होगा नहीं। तो फिर यह होता कैसे है ? तो इसका कारण है अंतर्दशा। अंतर्दशा उस राजा का मंत्री होता है, जो कुछ महीने या साल के लिए हमारे जीवन के ऊपर प्रभाव डालती है। राजा यदि फल अशुभ दे रहा है और मंत्री शुभ फल दे रहा है तो फल शुभ ही मिलेगा। अब मंत्री राजा के अनुरूप ही फल दे रहा है तब प्रत्यंतर दशा देखा जाता है, जिसे मंत्री का पदाधिकारी भी कह सकते हैं। अब यह पदाधिकारी और सूक्ष्म समय तक रहता है, इसलिए वह अपना प्रभाव समय के अनुरूप अच्छा या बुरा देगा। इसका तात्पर्य यह है कि महादशा यदि लंबे समय तक खराब है और अंतर्दशा भी खराब है और प्रत्यंतर दशा सही है तो वह समय सही रहेगा। कुछ समय के बाद यदि महादशा खराब है और अंतर्दशा सही हो जाता है तो सही समय की अवधि बढ़ जाएगी।