जानिए मुगल बादशाहों की तीन उपलब्धि, जो बिल्कुल झूठी हैं

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Shivam Jha

किसी का भी इतिहास जीत के हिसाब से लिखा जाता है। अगर महाभारत के युद्ध में दुर्योधन विजेता होता तो आज हम उसे ही महान मान रहें होते। क्योंकि उसके बाद वो इतिहास को अपने हिसाब से लिखवाता। आज के शासक दाराशिकोह और औरंगज़ेब के बहाने गुड मुगल और बैड मुगल की बात कर रहे हैं. इतिहास को फिर से लिखने की बात हो रही है।

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी बामपंथी इतिहासकारों ने कई चीजों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया। कई तथ्य अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए झूठे लिखे गए। मुगलों ने हमारे देश में सदियों तक शासन किया। उन्होने भारत को बहुत कुछ दिया और बहुत कुछ हमसे लिया भी। लेकीन इतिहास में मुगल शासन को बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है। ऐसे में उनके बारे में अनेकों भ्रांतियां भी फैलाई जाती है। आज हम आपकों कुछ ऐसी ही भ्रांतियों से रूबरू कराएंगे जो बिल्कुल झूठी है।

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हिंदुस्तान से प्रेम करता था बाबर

मुगल वंश के संस्थापक के बारे में इतिहासकार कहते हैं कि उसे भारत से बहुत प्रेम था। लेकीन ये बात बिल्कुल झूठी है। ऐसी कई ऐतिहासिक प्रमाण है जिससे ये बात साबित होती है कि बाबर को भारत पसंद नहीं था।

बाबर ने अपनी डायरी तुजुके बाबरी में काफी कुछ अच्छा और बुरा दोनों लिखा है। उसमें हिंदुस्तान के बारे में क्या लिखा है, आप खुद ही पढ़ लीजिए।

“हिंदुस्तान दिलचस्प मुल्क है। यहां के लोग खूबसूरत नहीं हैं। सामाजिक तानाबाना भी बहुत समृद्ध नहीं है। लोगों में शायरी करने का हुनर नहीं है। तमीज़, तहज़ीब और बड़ा दिल नहीं है। कला और शिल्प में सही अनुपात नहीं है। अच्छे घोड़े, मीट, अंगूर, तरबूज़ यहां नहीं होते। बाज़ारों में रोटी, अच्छा खाना या बर्फ नहीं मिलती है. गुसलखाने और मदरसे नहीं हैं।”

मुगल ने लाई बेहतरीन इमारतें

ये बात सच है कि भारतीय वास्तुकला में मुगल सम्राज्य का प्रभाव देखा जा सकता है। लेकीन ये बिल्कुल मिथ्या है कि भारत में बेहतरीन वास्तुकला मुगल ही लेकर आए। ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत में मुगलों के आने से सदियों पहले कई ऐसी इमारतें थी जिन्हें वास्तुकला का नायाब नमूना माना जाता है। अगर ताजमहल नहीं भी होता तो भी अजंता, ऐलोरा की गुफाएं, सांची का स्तूप, खजुराहो के मंदिर, दक्षिण के भव्य मंदिर, तंजौर की मूर्ति कला, मौजूद होते।

गंगा जमुनी तहज़ीब और उर्दू मुगल लाए 

जैसे ही आप गंगा जमुना तहजीब के बारे में सुनते हैं आपकों अकबर कि याद आती होगी।मगर सूफीवाद, उर्दू और गंगा जमुनी तहज़ीब जैसी चीज़ें हिंदुस्तान में बाबर के आने से पहले ही थीं। अमीर खुसरो बाबर से कम से कम 250-300 साल पहले ही “ज़िहाले मिस्किन मकुन तगाफुल दुराए नैना बनाए बतिया” लिखकर उर्दू की शुरुआत कर चुके थे।

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