नई दिल्ली। आमतौर पर इस्लाम में महिलाएं मस्जिद में नमाज पढ़ने नहीं जाया करती हैं। इस्लाम धर्म में ये बात सौफ तौर से कही गई है कि मस्जिद में लोग सिर्फ इबादत करने के लिए आते हैं और इबादत को लेकर महिला और पुरुष के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
मुस्लिम धर्म के ज्यादातर धर्मगुरुओं का यहीं मानना है कि इस्लाम में इबादत के नाम पर पुरुष और महिला के बीच अंतर नहीं किया जाता है। कुछ धर्मगुरुओं के मुताबिक, अगर महिलाएं ‘पाक’ हैं तो उन्हें मस्जिद में जाने से कोई नहीं रोक सकता है।
मस्जिद में समान अधिकार:
पुरुषों की तरह, महिलाओं को भी मस्जिद में इबादत का पूरा अधिकार है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस समर्थन में अपना स्थान रखा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अनुसार, महिलाएं मस्जिद में प्रवेश कर सकती हैं, महिलाओं को रोका नहीं जायेगा।
महिलाओं को भी मस्जिद में नमाज पढ़ने का अधिकार है। 2020 में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को इस अधिकार की पुष्टि की थी। कुछ धर्मगुरुओं का कहना है कि महिलाएं और पुरुष एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। भारत में कई स्थानों पर महिलाएं मस्जिद में नमाज पढ़ने का सुखद अधिकार रखती हैं।
महिला मस्जिदें:
कुछ स्थानों पर, जैसे अमरोहा जिले के शहतपोता में, कुछ ऐसी मस्जिदें हैं, जहां सिर्फ महिलाएं ही नमाज पढ़ती हैं। भारत के कई हिस्सों में महिलाओं के मस्जिद जाकर नमाज अदा करने में किसी भी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है।
साल 2015 में अमेरिका के कैलिफोर्निया के लॉस एंजिल्स शहर में देश की पहली महिला मस्जिद खुली थी। कनाडा में भी महिलाएं मस्जिद में नमाज पढ़ सकती हैं।
इन देशों में महिलाओं का मस्जिद जाना आम
मलेशिया में भी महिलाओं के मस्जिद में जाकर नमाज अदा करने की अनुमति दी गई है। यहां की Negara मस्जिद में महिलाओं के लिए नमाज पढ़ने का अलग हिस्सा भी बना हुआ है। इसके अलावा राजधानी क्वालालंपुर में महिलाओं के नमाज अदा करने करते समय उनके छोटे बच्चों के लिए खिलौने खेलने की भी व्यवस्था है। तुर्की, लंदन और सऊदी अरब में कुछ ऐसे देश हैं, जहां महिलाओं को मस्जिद में जाकर नमाज अदा करना आम बात है।