Chhath Puja 2022: छठ व्रत बहुत कठिन व्रत में से एक है, इस दिन उगते एवं डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। 4 दिन तक चलने वाले इस महान और कठिन पर्व का दूसरा दिन खरना होता है। तीसरे दिन संध्या के समय डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है इस दिन सभी व्रत धारी महिलाएं अपने संतान एवं सुहाग की लंबी उम्र के लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती है। यह छठ पर्व मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार में बहुत धूमधाम एवं विधि विधान के साथ मनाया जाता है। छठ पर्व का समापन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पारण करके किया जाता है। इस दिन महिलाएं नाक से लेकर मांग तक सिंदूर भरती है एवं इसमें महिलाएं नारंगी रंग के सिंदूर को ही लगाती हैं। आइए जानते हैं कि इस व्रत में नारंगी रंग के सिंदूर लगाने का क्या विधान है,
इसलिए लगाती है नाक से लेकर माथे तक सिंदूर
हिंदू धर्म की महिलाओं के सोलह सिंगार में से एक सिंदूर है जो सुहाग की निशानी मानी गई है। छठ पूजा के दिन महिलाएं नाक से मांग तक सिंदूर भर्ती है। ऐसा कहा गया है कि सिंदूर जितना लंबा होता है पति की आयु उतनी लंबी होती है। लंबी सिंदूर पति की आयु के साथ-साथ परिवार में सुख शांति और संपन्नता का प्रतीक है। इस दिन लंबा सिंदूर लगाने से घर परिवार में खुशहाली और सुख शांति आती है। महिलाएं छठ पर्व पर सूर्य भगवान की पूजा एवं छठी मैया की पूजा के साथ साथ पति एवं संतान के लंबी आयु और परिवार में सुख शांति और संपन्नता की प्रार्थना करके व्रत को पूरा करती है।
इसलिए लगाया जाता है नारंगी सिंदूर
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक छठ पर्व पर महिलाएं नारंगी सिंदूर से मांग भरती है कहा जाता है कि इस दिन नारंगी सिंदूर से मांग भरने से पति की लंबी आयु के साथ उनके एवं व्यापार में भी बरकत होती है। उनको हर स्थान में सम्मान और सफलता मिलती है, इसके अलावा वैवाहिक जीवन भी सुख में होता है। नारंगी रंग हनुमान जी का भी शुभ रंग है।
छठ पूजा की क्या कथा है
महाभारत काल के दौरान पांडवों के राजपाट जुए में हारने के बाद द्रोपति ने पहली बार छठ का व्रत रखा था और द्रोपती के व्रत से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनके राज्यपाल को वापस दिलाया था, तब से लेकर आज तक घर में सुख शांति और समृद्धि खुशहाली के लिए छठ का व्रत रखा जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने ही सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की थी और घंटो पानी में खड़े रहकर सूर्य भगवान को अर्घ देते थे।