नई दिल्ली- साल 2007 में बीएसपी चीफ मायावती 206 विधायकों के साथ उत्तर प्रदेश की सरकार में लौट कर आई थी। मायावती के जन्मदिन पर पूर्वांचल के गांव में जी भर के लोग लखनऊ के रमाबाई मैदान में जा रहे थे। कई ऐसे लोग भी जा रहे थे जो अपने दिन की दिहाड़ी छोड़कर जा रहे थे। पार्टी कार्यकर्ताओं ने उस दिहाड़ी की भरपाई के साथ खाने की व्यवस्था की थी।
साल 2023 में दिल्ली के जंतर मंतर में भीम आर्मी चीफ आजाद ने अपने ऊपर हुए जानलेवा हमला के बाद शुक्रवार को रैली बुलाई थी। रैली में पीने के लिए पानी नहीं था। यही कार्यकर्ता अपने पैसे से ₹20 का पानी की बोतल खरीद रहे थ पार्क में जमीन पर बैठकर नीले झंडे के नीचे टिफिन और निकालकर पराठा सब्जी खा रहे थे। कुछ लोग घर में इटावा के लिए चना चबा रहे थे। और लेटे हुए बीड़ी का बंडल सुलगा रहे थे।
बुलंदशहर से आए ज्वाला प्रसाद ने यह भी बताया कि वह अपने नेता चंद्रशेखर आजाद के लिए 3800 चंदा लगाकर गाड़ी से आए हैं इन दोनों कहानी का समानता है. दोनों रैलियों के नीले निशान तस्वीरों में अंबेडकर काशीराम और तमाम दलित चेतना के नेताओं की तस्वीर और दोनों रैलियों की भीड़ में दलितों की भागीदारी यही उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति जिसकी आपकी आंखों देखी सीधे दिल्ली के जंतर मंतर से है।
जब हम सुबह 10:00 बजे चंद्रशेखर आजाद की दिल्ली वाली रैली में जंतर मंतर पहुंचे तो बस कार और औरतों से लोग आ रहे थे उससे ज्यादा भी व्यस्त था उसके पास का जनपथ मेट्रो जहां नीले गमछावाला लोग ठंड से निकल रहे थे यह वह समय है जैसे मौसम के हिसाब से दिल्ली का सबसे घटिया समय कहां जा रहा है।
बरसात की धूप और दिल्ली की उम्र लेकिन इसमें भी लोग खड़े थे हाथों में मूछों पर ताव दे रहे थे। आजाद की फोटो लिए घूम रहे थे। अलग-अलग प्रदेश से आए लोग अपनी बात रख रहे थे। लेकिन जनता को इंतजार था। अपने नेता चंद्रशेखर का जो अभी पीठ में लगी गोली का इलाज करा कर लौट रहे थे।
11:00 बजे मंच से कहा गया कि बस चंद्रशेखर आने वाले लोग पेड़ों पर रेलिंग पर और खंभों पर चल गए कुछ के हाथों के मोबाइल से तस्वीरें दिखा रहे थे कि चंद्रशेखर से वह मिल चुके हर कोई स्टेज पर जाना चाह रहा था तभी स्टेज की ठीक पीछे चंद्रशेखर आजाद सुरक्षा घेरे में एंट्री करते हैं नारा लगाते हैं एरो का ना गैरों का भीम आर्मी शेरों का तमाम मोबाइल चमक रहे थे फोटो के लिए मंच पर पहुंचते ही चंद्रशेखर आजाद ने कहा अगर आप मुझे मानते हैं। तो बैठ जाइए। इधर वाले लोग आप मेरा सम्मान कीजिए धीरे-धीरे ही जनता थोड़ी-थोड़ी शांत हो गई।
युवा नेता की रैली में पहुंचे युवा पत्रकारों की नोकझोंक हो गई। और आंखों ने जो देखा और उससे एक नजरिया मिला एक भीड़ थी। जिसमें पसीनो की गांठ थी। लोक सामूहिक नीले रंग उड़े थे। जिसमें गॉगल वाली ग्रामीण महिलाएं भी थी जिन्हें खुद और नेता के बारे में पता था। और नेता से प्रेम था। कुछ उत्साहित लड़के जिनके लिए आर्मी सब कुछ लुटियन की दिल्ली में सपना था कि 1 दिन मेरा नेता उस घर में बैठेगा जहां अंबेडकर ने संविधान बनाया था। दूसरी ओर एक मंच था। जहां एक नेता था उसके साथ और भी नेता थे। जिन्हें लग रहा था। कि उस घर में उनकी चलेगी जिसे जनता संसद तक ले जाती है।