Sawan Somvar : हिन्दू धर्म में मंदिरों, देव-स्थलों और मूर्तियों की परिक्रमा का आदान-प्रदान बहुत पुरानी प्रथा है। कुछ अध्ययनों ने दिखाया है कि मंदिरों और धार्मिक स्थल में जाने से मानसिक शांति, ध्यान, और सकारात्मक भावना विकसित हो सकती है। यहां आपका मन शांत होता है और आप आत्मा के साथ संपर्क में आते हैं। साथ ही, कुछ लोग मानते हैं कि इन स्थानों में मौजूद धार्मिक ऊर्जा और आरामदायक वातावरण स्वास्थ्य और सुख-शांति में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
क्यों करते है मंदिर की परिक्रमा:
जब कोई व्यक्ति मंदिर की परिक्रमा करता है, उसे भगवान के समीप महसूस होने का अनुभव होता है और वहां उपस्थित धार्मिक ऊर्जा के संचार का अनुभव करता है। यहां उपस्थित ऊर्जा को व्यक्ति अपने साथ घर ले जाता है, जिससे उसके आसपास की वातावरण में सकारात्मकता का आभास होता है। यह ऊर्जा सुख, शांति, सौभाग्य और प्रोस्पेरिटी को लाता है, जो घर में वास करती है।
ज्योतिष शास्त्रों में बताया गया है की भगवान की परिक्रमा और पूजा करने से उनके ग्रहों और नक्षत्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इससे उन्हें शुभ फल मिलता है। इसके अलावा, यह धार्मिक उपासना करने वाले व्यक्ति को आध्यात्मिक और मानसिक उन्नति में सहायता कर सकती है।
क्यों नहीं करते शिव की पूरी परिक्रमा:
भगवान शिव के मंदिरों और शिवलिंग की परिक्रमा के विषय में एक कहावत है – “जहां परिक्रमा पूरी नहीं हो सकती, वहां भोलेनाथ की परिक्रमा अधूरी ही रहती है”। इसका मतलब है कि भगवान शिव की पूरी परिक्रमा करना असंभव है और उनके अधीन हमारी सीमाएं होती हैं। इस बात का अर्थ है कि भगवान शिव अत्यन्त अद्यांत और अपरिमित हैं, जिसके कारण हम उन्हें सीमित नहीं कर सकते और उनकी पूरी परिक्रमा नहीं कर सकते।
हिंदू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं में शिवलिंग को भगवान शिव और देवी पार्वती के संयोग का प्रतीक माना जाता है। इसे प्राकृतिक तत्वों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।जब शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, तो चढ़ाया हुआ जल जहां से निकलता है, उसे जलाधारी कहते हैं। शिव पुराण में उल्लिखित है कि जलाधारी को लांघना वर्जित है। शिवलिंग का जलाधारी शक्ति-स्वरूपा देवी पार्वती का प्रतीक है। इसे लांघने से व्यक्ति को कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। यही कारण है कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा लगाई जाती है।
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