Mandir Parikrama: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा पूजा का अभिन्न अंग है। पूजा के नियमों में देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा भी शामिल है।
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा पूजा का अभिन्न अंग है। पूजा के नियमों में देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा भी शामिल है। चाहे वह मंदिरों की परिक्रमा हो या पूजा के दौरान एक स्थान पर बैठकर परिक्रमा करना, दोनों का बहुत महत्व है। अगर आप भी मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं तो परिक्रमा जरूर करते होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि परिक्रमा क्यों की जाती है और परिक्रमा के नियम क्या हैं? आइए जानते हैं क्या हैं परिक्रमा के नियम और क्या हैं इससे लाभ।
पहली क्रांति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश और कार्तिकेय ने सबसे पहले परिक्रमा की थी। देवताओं के बीच यह निर्णय लिया गया कि जो विश्व का चक्कर सबसे पहले लगाएगा, उसकी पूजा सबसे पहले की जाएगी। इसमें भगवान शंकर और माता पार्वती की परिक्रमा करके भगवान गणेश प्रथम पूज्य देवता बने। इसी आधार पर देवी-देवताओं और उनके घर के मंदिरों की परिक्रमा से पुण्य प्राप्ति की शुरुआत मानी जाती है।
सकारात्मक ऊर्जा
सनातन धर्म में परिक्रमा को बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इससे उसके आसपास फैली नकारात्मकता नष्ट हो जाती है। देवताओं या मंदिरों की परिक्रमा करना उनकी सर्वोच्चता के सामने सिर झुकाने जैसा है।
परिक्रमा कैसे करें
शास्त्रों के अनुसार, भगवान के दाहिने हाथ से बाएं हाथ की ओर परिक्रमा करना हमेशा शुभ माना जाता है। परिक्रमा की गणना सदैव विषम संख्या में करनी चाहिए। जैसे 11 या 21 बार परिक्रमा करना शुभ माना जाता है। परिक्रमा करते समय बात नहीं करनी चाहिए। इस समय चलते समय भगवान का स्मरण करना सर्वोत्तम माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से भी परिक्रमा लाभकारी मानी जाती है। जिस स्थान पर प्रतिदिन पूजा होती है वहां सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यह ऊर्जा उसके आत्मविश्वास को मजबूत करती है और उसे मानसिक शांति देती है।