नई दिल्ली: किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश कर रहे हैं। इससे पहले कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में इस विधेयक को पेश करने पर आम सहमति बनी थी। इस विधेयक के पेश होने से पहले विपक्षी भाजपा ने विहिप जारी कर अपने सांसदों को सदन में उपस्थित रहने को कहा था। इस विधेयक का मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं। वहीं विपक्षी दल भी इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि इसके जरिए मुसलमानों के अधिकार छीने जा रहे हैं। इस बीच एक सवाल यह भी है कि क्या वक्फ जैसी व्यवस्था सिर्फ भारत में ही है या अन्य देशों में भी इस तरह की कोई संस्था है। आइए जानते हैं।
पूरा मंत्रालय बनाया गया
मुस्लिम जानकारों की मानें तो वक्फ की परंपरा शुरू से ही व्यक्तिगत स्तर पर चली आ रही है, इसे किसी शासक या बादशाह ने संगठित रूप में शुरू किया था। उन्होंने बताया कि इस्लाम के संविधानों में वक्फ के लिए एक पूरा मंत्रालय बनाया गया है। जैसे सऊदी अरब में वक्फ मंत्रालय है। इसके अलावा यूएई, कतर और इराक में भी वक्फ के लिए अलग से मंत्रालय बनाए गए हैं। यह पूरी तरह से धार्मिक आधार पर निर्भर करता है। दुनिया के अलग-अलग इस्लामिक देशों में वक्फ की व्यवस्था अलग-अलग हो सकती है, लेकिन वहां भी इसका मुख्य उद्देश्य धार्मिक कार्यों के लिए संपत्ति का उपयोग करना है। यह जरूरी नहीं है कि इसे दूसरे देशों में वक्फ ही कहा जाए। लेकिन सीरिया और मिस्र जैसे देशों में भी वक्फ जैसी ही एक संस्था है, हालांकि उनके नाम स्पष्ट नहीं हैं।
मस्जिदों के रख-रखाव के लिए
हालांकि, तुर्की में इसे फाउंडेशन कहा जाता है। यहां फाउंडेशन निदेशालय नाम का एक विभाग है। मिस्र में बंदोबस्ती मंत्रालय नाम का एक विभाग है जो मस्जिदों के रख-रखाव के लिए है। बांग्लादेश में वक्फ संपत्ति की देखभाल धार्मिक मामलों का मंत्रालय करता है। जबकि पाकिस्तान में वक्फ संपत्तियों की देखरेख और कामकाज इस्लामाबाद और प्रांतीय सरकारों के प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। इंडोनेशिया में BWI यानी बदन वक्फ इंडोनेशिया नाम की एक संस्था काम करती है, जो वक्फ संपत्तियों की प्लानिंग करती है। हालांकि, ज्यादातर देशों में वक्फ का संचालन और नियंत्रण केंद्र सरकार के पास होता है। दुनिया भर में वक्फ संपत्ति का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों और इमामबाड़ों के रूप में मौजूद है।
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