नई दिल्ली- मिशन 2024 को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है। यह चुनाव भारतीय राजनीति के लिए काफी अहम माने जा रहे हैं। देश की राजनीति दो भागों में फट गई एक तरफ भारतीय जनता पार्टी नीति एनडीए है। तो दूसरी तरफ विपक्षी दलों की एक साथ मिलकर महागठबंधन की तैयारी उसका नाम इंडिया रखा गया है। लगभग पूरा का पूरा विपक्ष ही भाजपा के खिलाफ एकजुट हो गया है।
आपको बता दें कि विपक्षी दलों के इंडिया में 26 राजनीतिक दल है। तो वहीं एनडीए में 38 राजनीतिक दल है इस बीच बहुजन समाज पार्टी चीफ मायावती ने साफ कर दिया है। कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। बसपा चीफ के मुताबिक ना बसपा एनडीए के साथ है। ना ही इंडिया के साथ है। यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव अपने दम पर ही लड़ेगी। बता दे कि इंडिया में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी जयंत चौधरी की आरएलडी कृष्णा पटेल की अपना दल कमरा वादी है तो वहीं एनडीए में ओपी राजभर की सुभाषपा और अनुप्रिया पटेल की अपना दल सोनेलाल और संजय निषाद की अपनी-अपनी पार्टियां है।
सियासी हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि चंद्रशेखर आजाद की पार्टी भी इंडिया गठबंधन में शामिल हो सकती है माना जा रहा है। कि विपक्षी दलों ने नेताओं को बसपा चीफ मायावती के फैसले का इंतजार था। मगर अब बसपा चीफ ने अपना फैसला साफ कर दिया है। कि वह अकेले ही चुनाव लड़ेंगे ऐसे में आजाद समाज पार्टी और विपक्षी दलों के महागठबंधन में आने के संकेत जाहिर किए जा रहे है।
इन सब के बीच एक सवाल यह है। कि क्या अकेले चुनाव लड़ने से मायावती को फायदा होगा या नहीं वैसे पिछले चार चुनाव को देखा जाए तो बसपा चीफ की सियासी तौर पर नुकसान नहीं उनको उठाना पड़ रह है। पिछले 4 चुनाव में मायावती का वोट प्रतिशत कम हुआ उनका वोट बैंक उनके अलग हो रहे हैं। बता दें कि पिछले 10 सालों से मायावती ने करीब 60% वोट खो दिया हालांकि है दावा किया जा रहा है। कि यूपी में दलितों में खासतौर से जाटव समुदाय के लोग आज भी मायावती को वोट देते हैं। अब देखना यह होगा कि मायावती को अपने सियासी फैसले पर कितना फायदा होता है।