FARMERS PROTEST: भारत के कई हिस्सों में एक बार फिर किसानों ने अपना आंदोलन शुरू कर दिया है, जिनकी तमाम मांगें हैं। किसानों का आक्रोश शांत करने के लिए सरकार के साथ चार दौर की बैठक भी हुई है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका। इस बार किसान फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली सीमा को घेरने पर अड़े हैं।
सरकार अभी भी कोई बीच का रास्ता निकालना चाहती है, लेकिन समाधान होता नहीं दिख रहा है। इस बार किसान एमएसपी पर कानूनी गारंटी से कम कुछ भी मानने को तैयार नहीं हैं, लेकिन सरकार किसानों की इस मांग को पूरा करने में अपनी मजबूरी का संकेत दे रही है। अगर सरकार एमएसपी की मांग मान लेती है तो इसका अर्थव्यवस्था पर कई तरह से असर पड़ेगा। आपको एमएसपी का पूरा गणित क्या है जो सरकार को इसे स्वीकार करने से रोक रहा है।
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एमएसपी बहुत पुरानी मांग
किसान फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की मांग कर रहे हैं, यह बहुत पुराना विचार है। कृषि जानकारों के अनुसार, एमएसपी 1960 के दशक का विचार है, जो मौजूदा दौर में फिट नहीं बैठता। उस समय देश अनाज की कमी से जूझ रहा था।
उस समय सरकार ने किसानों को अधिक फसल पैदा करने के लिए प्रेरित करने के कदम के तौर पर एमएसपी प्रणाली शुरू की थी, लेकिन अब देश में जरूरत से ज्यादा अनाज पैदा होता है। देश ‘खाद्य अधिशेष चरण में है। ऐसे में एमएसपी की जरूरत ही खत्म हो गई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, एमएसपी व्यवस्था हमेशा के लिए नहीं चल सकती। अब देश में जरूरत से ज्यादा अनाज है। अब इसे रखने के लिए जगह की कमी हो गई है, जिससे बड़ी मात्रा में अनाज खराब हो जाता है, लेकिन अब एमएसपी एक राजनीतिक मुद्दा और किसानों के वोट पाने का जरिया बन गया है।
जानिए सरकार की मजबूरी
भारत में पैदा होने वाले अनाज का केवल 13-14 प्रतिशत ही सरकार एमएसपी पर खरीदती है, बाकी अनाज खुले बाजार में बेच दिया जाता है। सरकार जो अनाज खरीदती है वह भी गोदामों में भरा रहता है, जिसे सरकार वितरित नहीं कर सकती। इसलिए सरकार ने मुफ्त अनाज की योजना भी शुरू की है। सीएसीपी की रिपोर्ट के अनुसार, एफसीआई की भंडारण क्षमता करीब 41 मिलियन टन गेहूं-चावल है, लेकिन 74.4 मिलियन टन से ज्यादा अनाज भंडारित है।