Gautam Buddhas inspirational story -Life’s grains गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी-जीवन के दाने

Gautam buddhas inspirational story in hindi Buddha and Followers गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी
It is an inspirational story of Gautama Buddha. Which inspires us not to get distracted while we are passing through difficulties .
cradit………….
Ross Bugden – Music
https://www.youtube.com/channel/UCQKGLOK2FqmVgVwYferltKQ/videos
Sir bohot acha he or banaye video
very nice sir
Kisa gotami story 😍☺
Budh budh hai bhagwan nhin
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Prakrati kisne banaya hai
।2.27।।युद्ध्यस्य नन्वात्मन आभूतसंप्लवस्थायित्वपक्षे नित्यत्वपक्षे दृष्टादृष्टदुःखसंभवात्तद्भयेन शोचामीत्यत आह द्वितीयश्लोकेन हि यस्मात् जातस्य स्वकृतधर्माधर्मादिवशाल्लब्धशरीरेन्द्रियसंबन्धनस्य स्थिरस्यात्मनो ध्रुव आवश्यको
मृत्युस्तच्छरीरादिविच्छेदस्तदारम्भककर्मक्षयनिमित्तः। संयोगस्य वियोगावसानत्वात्। तथा ध्रुवं जन्म मृतस्य च
प्राग्देहकृतकर्मफलोपभोगार्थं सानुशयस्यैव प्रस्तुतत्वान्न जीवन्मुक्तेर्व्यभिचारः। तस्मादेवमपरिहार्ये
परिहर्तुमशक्येऽस्मिञ्जन्ममरणलक्षणेऽर्थे विषये त्वमेवं विद्वान्न शोचितुमर्हसि। तथाच वक्ष्यतिऋतेऽपि त्वां नभविष्यन्ति सर्वे इति। यदि हि त्वया युद्धेनाहन्यमाना एते जीवेयुरेव तदा युद्धाय शोकस्तवोचितः स्यात् एते तु कर्मक्षयात्स्वयमेव म्रियन्त इति तत्परिहारासमर्थस्य तव दृष्टदुःखनिमित्तः शोको नोचित इति भावः। एवमदृष्टदुःखनिमित्तेपि शोकेतस्मादपरिहार्येऽर्थे
इत्येवोत्तरम्। युद्धाख्यं हि कर्म क्षत्रियस्य नियतमग्निहोत्रादिवत्। तच्चयुध संप्रहारे इत्यस्माद्धातोर्निष्पन्नं
शत्रुप्राणवियोगानुकूलशस्त्रप्रहाररूपं विहितत्वादग्नीषोमीयादिहिंसावन्न प्रत्यवायजनकम्। तथाच गौतमः स्मरतिन दोषो
हिंसायामाहवेऽन्यत्र व्यश्वासारथ्यनायुधकृताञ्जलिप्रकीर्णकेशपराङ्भुखोपविष्टस्थलवृक्षारूढदूतगोब्राह्मणवादिभ्यः इति।
ब्राह्मणग्रहणं चात्रायोद्धृब्राह्मणविषयम्। गवादिप्रायपाठादिति स्थितम्। एतच्च सर्वंस्वधर्ममपि चावेक्ष्य इत्यत्र स्पष्टीकरिष्यते। तथाच युद्धलक्षणेऽर्थेऽग्निहोत्रादिवद्विहितत्वादपरिहार्ये परिहर्तुमशक्ये तदकरणे प्रत्यवायप्रसङ्गात् त्वमदृष्टदुःखभयेन शोचितुं नार्हसीति पूर्ववत्। यदि तु युद्धाख्यं कर्म काम्यमेवय आहवेषु युध्यन्ते भूम्यर्थमपराङ्मुखाः। अकूटैरायुधैर्यान्ति ते स्वर्गं योगिनो यथा।। इति याज्ञवल्क्यवचनात्हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् इति भगवद्वचनाच्च तदापि प्रारब्धस्य काम्यस्याप्यवश्यपरिसमापनीयत्यवे नित्यतुल्यत्वात् त्वयाच युद्धस्य प्रारब्धत्वादपरिहार्यत्वं तुल्यमेव। अथवा आत्मनित्यत्वपक्ष एव श्लोकद्वयं अर्जुनस्य परमास्तिकस्य वेदबाह्यमताभ्युपगमासंभवात्। अक्षरयोजना तु नित्यश्चासौ
देहेन्द्रियादिसंबन्धवशाज्जातश्चेति। नित्यजातस्तमेनमात्मानं नित्यमपि सन्तं जातं चेन्मन्यसे तथा नित्यमपि सन्तं मृतं चेन्मन्यसे तथापि त्वं नानुशोचितुमर्हसीति प्रतिज्ञाय हेतुमाह जातस्य हीत्यादिना। नित्यस्य जातत्वं मृतत्वं च प्राग्व्याख्यातम्।
स्पष्टमन्यम्। भाष्यमप्यस्मिन्पक्षे योजनीयम्।
भौतिकवादी नास्तिक लोगों का मत है कि बिना किसी पूर्वापर कारण के वस्तुएँ उत्पन्न नहीं होती हैं। आस्तिक लोग देह से भिन्न जीव का अस्तित्व स्वीकार करते हुए कहते हैं कि एक ही जीव विकास की दृष्टि से अनेक शरीर धारण करता है जिससे वह इस दृश्य जगत् के पीछे जो परम सत्य है उनको पहचान सकें। दोनों ही प्रकार के विचारों में एक सामान्य बात यह है कि दोनों ही यह मानते हैं कि जीवन जीवनमृत्यु की एक शृंखला है।
इस प्रकार जीवन के स्वरूप को समझ लेने पर निरन्तर होने वाले जन्म और मृत्यु पर किसी विवेकी पुरुष को शोक नहीं करना चाहिए। गर्मियों के दिनों में सूर्य के प्रखर ताप में बाहर खड़े होकर यदि कोई सूर्य के ताप और चमक की शिकायत करे तो वास्तव में यह मूढ़ता का लक्षण है। इसी प्रकार यदि जीवन को प्राप्त कर उसके परिवर्तनशील स्वभाव की कोई शिकायत करता है तो यह एक अक्षम्य मूढ़ता है।
उपर्युक्त कारण से शोक करना अपने अज्ञान का ही परिचायक है। श्रीकृष्ण का जीवन तो आनन्द और उत्साह का संदेश देता है। उनका जीवनसंदेश है रुदन अज्ञान का लक्षण है और हँसना बुद्धिमत्ता का। हँसते रहो इन दो शब्दों में श्रीकृष्ण के उपदेश को बताया जा सकता है। इसी कारण जब वे अपने मित्र को शोकाकुल देखते है तो उसकी शोक और मोह से रक्षा करने के लिए और इस प्रकार उसके जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कराने के लिए वे तत्पर हो जाते हैं।
अब आगे के दस श्लोक सामान्य मनुष्य का दृष्टिकोण बताते हैं। भगवान् शंकराचार्य अपने भाष्य में कहते हैं कार्यकारण के सम्बन्ध से युक्त वस्तुओं के लिए शोक करना उचित नहीं क्योंकि
Subject: Grieving for the Dead
विषय: मृत का शोक
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥२७॥
(Because) death is inevitable for the born and certain is birth for the dead. You can not do anything in this regard. Therefore, it does not behove of you to grieve for this.
Lesson: It is not good to grieve for the dead as death and rebirth are certain for who ever is born.
क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने योग्य नहीं है। ॥२७॥
Subject: Law of Causation
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥२८॥
O Bharat, prior to birth and after their death, all beings are unmanifested (do not have body form). Only during the interim period, they seem to be manifested. Then what is there to concern about?
Lesson: Manifested is the perishable body. Its causes are unmanifested. One should not grieve for the perishable.
हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?। ॥
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Keep it up man 👍👍
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नमो बुद्धा।।। जय जय जय हो आपकी।।। जयश्रीराधेकृष्ण
I liked this video
sound is hard to hear
Sir please tell me the background music name….
बहुत दिनो बाद आपने बुद्ध की सच कहानी upload की है.. अन्यथा आपकी बुद्ध की सारी कथाएं आपके द्वारा मन गड़न होती है… 🆗..???
Aapne serial-Buddha se copy kiya hai na?
I love that serial.
महावीर जागेराम सौदा
Namo bhudhdhay
Bahut achhi bat
Dhanyawaad.