नई दिल्ली- राजस्थान के पांचवीं सबसे बड़े जिले यानी नागौर से अलग होकर सुबह के भूगोल पर नए जिले के रूप में उभरने वाले डीडवाना विधानसभा क्षेत्र में विधायक की रिपीट करना सबसे बड़ी चुनौती है। हालांकि यह क्षेत्र जातिवाद वंशवाद और परिवारवाद से दशकों तक कोसों दूर रहा लेकिन पिछले चुनाव में यह परंपरा टूट गई और पूर्व विधायक रहे रुपाराम डूडी के पुत्र चेतन डूडी की जीत हुई।
डीडवाना विधानसभा क्षेत्र से अब तक नौ व्यक्ति विधायक चुने गए हैं जिसमें मथुरादास माथुर उम्मेद सिंह राठौड़ और यूनुस खान अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी रहे इस सीट पर अब तक हुए 15 विधानसभा चुनाव में 9 अलग-अलग व्यक्ति चुनकर विधानसभा पहुंचे इनमें सबसे पहले नाम मथुरादास माथुर का आता है जो डीडवाना के पहले विधायक भी बने तो वहीं इसके बाद मोतीलाल चौधरी भोमाराम उमेद सिंह राठौड़ चेनाराम भवन राम रूपाराम डूडी यूनुस खान और चेतन दोधी यहां से विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे वही सबसे खास बात यह रही कि 1962 में मोतीलाल के बाद कोई भी नेता अपनी विधायकी लगातार रिपीट करने में कामयाब नहीं हो सका।
नागौर से अलग होकर डीडवाना और कुचामन को संयुक्त रूप से जिला बनाया गया है तकरीबन 30 सालों से इन क्षेत्रों को जिला बनाने की मांग की थी नवगठित जिले में डीडवाना मौलासनागौर से अलग होकर डीडवाना और कुचामन को संयुक्त रूप से जिला बनाया गया है तकरीबन 30 सालों से इन क्षेत्रों को जिला बनाने की मांग की थी नवगठित जिले में डीडवाना मौलासर छोटी खाटू लाडनू परबतसर मकराना नावा और कुचामन सिटी को शामिल किया गया है नया जिला बनने से क्षेत्र के सियासी समीकरण भी बदल गए हैं जिसका असर 2023 के विधानसभा चुनाव में देखने को निश्चित तौर पर मिलेगा।
1951 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मथुरादास माथुर चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं उन्हें निद्रा लिए उम्मीदवार अब्दुल गनी ने चुनौती दी अब्दुल गनी के पक्ष में 8536 वोट पड़े तो वही मथुरादास माथुर के पक्ष में 11 394 मतदाताओं का समर्थन मिला इसके साथ ही डीडवाना के पहले विधायक मथुरा दास माथुर बने।
1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मोतीलाल चुनावी मैदान में उतरे तो उन्हें कई अन्य उम्मीदवारों ने चुनौती दी इस चुनाव में मोतीलाल की जीत हुई और उन्हें 19905 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ जबकि मथुरादास माथुर सांसद के रूप में संसद पहुंचे।