नई दिल्ली। हम हर दिन कई अतभूत कहानियां और कुछ ऐसी खबरें सुनते हैं, जिसे मानना काफी मुश्किल होता है। हाल ही में दिमाग से जुड़ी कुछ ऐसी कहानी और खबर सुनने को मिली जो काफी चौकाने वाली है। हमारा जब भी किसी से झगड़ होता है तो हम यहीं कहते हैं कि अरे तुम्हारा दिमांग खराब है क्या या फिर तुम्हारे में दिमाग नहीं है। लेकिन हमें यह नहीं पता होता कि दिमाग से जुड़ी कुछ ऐसी अद्भुत कहानियां हैं जो काफी रहस्यमय और अनोखी हैं। वहीं पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) में लगभग 312 जनजातियां रहती हैं। यहां रहने वाले इंसान आम व्यक्ति से थोड़े अलग हैं, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि अंतिम संस्कार के वक्त इस जनजाति में इंसान का दिमाग खाने की प्रथा थी।
फोर जनजाति ऐसी जनजाति है, जब कोई अंतिम संस्कार होता था, तो वहां इस तरह की दावतें होती थीं। जहां पुरुष अपने मृतक रिश्तेदारों का मांस खाते थे। इस जनजाति का मानना था कि अगर शरीर को दफनाया जाता है या किसी प्लैटफॉर्म पर रखा जाता है। तो इसे कीड़े खाते हैं इससे बेहतर तो ये है कि शरीर को वे लोग खाएं जो मृतक से प्यार करते हैं। फोर जनजाति में जब कोई अंतिम संस्कार होता था, तो वहां दावतें होती थीं। जहां पुरुष अपने मृतक रिश्तेदारों का मांस खाते थे, जबकि महिलाएं उनका दिमाग खाया करती थी।
इतना ही नहीं बल्कि महिलाएं, दिमाग को निकालकर उसमें फर्न मिलाती और फिर इसे बांस में पकाया जाता था। पित्ताशय को छोड़कर सब कुछ भूनकर खा लिया जाता था। लेकिन इस जनजाति को यह नहीं पता था कि मानव मस्तिष्क में एक घातक अणु होता है, जो खाए जाने पर मौत का कारण बनता है।
वहीं अंतिम संस्कार के वक्त इस जनजाति में इंसान का दिमाग खाने की प्रथाब्रिटेन और पापुआ न्यू गिनी के वैज्ञानिक फोर जनजाति के लोगों पर शोध किया गया। शोध से पता चला है कि ये आदिवासी जिनके आहार में उनके मृत रिश्तेदारों का दिमाग भी शमिल था। इन्होंने कुरु नाम की बीमारी के लिए आनुवंशिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है।
1950 के दशक में कुरु के प्रकोप के बाद, न्यू गिनी में मानव मस्तिष्क खाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बीमारी तब गायब होने लगी थी। हालांकि, जनजाति की जांच करने वाले वैज्ञानिकों ने अब पता लगाया है कि फोर जनजाति की दिमाग-खाने की आदतों की वजह से कुरु और प्रायन की वजह से होने वाली अन्य बीमारियों के लिए आनुवंशिक प्रतिरोधक क्षमता का विकास हुआ है।