नई दिल्लीः भारत में अब मानसून का सीजन शुरू होने जा रहा है, जिस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। किसानों से लेकर आम लोगों तक गर्मी से बचाव और सूखती फसलों को पानी मिलने के लिए मानसून की तरफ टकटकी लगाए देख रहे हैं। पश्चिम-दक्षिण मानसून ने जोर भरना भी शुरू कर दिया है, जिसके 29 मई तक केरल पहुंचने की संभावना जताई गई है। देशभर में लोग मानसूनी बारिश के बारे में बड़े ज्योतिषों से भी पूछते हैं।
क्या आपको पता है यूपी के कानपुर में घाटमपुर के भीतरगांव विकास खंड के बेहटा बुजुर्ग में स्थित भगवान का प्राचीन मंदिर एक बार फिर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। मौसम विभाग ने अभी मानसूनी बारिश को लेकर किसी तरह की चर्चा नहीं की, लेकिन मंदिर के गुबंद में लगा पत्थर अभी से भीगने लगा है। हालांकि, अभी इसमें बूंदों नहीं बनी हैं, जिन्हें देखकर ही मानसून का अनुमान लगाया जाएगा। इसकी भविष्यवाणी भी मंदिर महंत द्वारा की जाती है।
देश-विदेश में प्रसिद्ध है मंदिर
कानपुर के बेहटा बुजुर्ग गांव स्थित यह मंदिर देश ही नहीं विदेशों में भी मानसून का अनुमान लगाने के लिए विख्यात है। इस ऐतिहासिक मंदिर के गर्भगृह के भीतर भगवान जगन्नाथ, बदलदाऊ बहन सुभद्रा की काले पत्थर की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इस मंदिर में मानसून से पहले बंद टपकना और बारसत के दिनों में मंदिर के अंदर एक बूंद पानी भी नहीं आनी किसी हैरानी से कम नहीं है।
मंदिर के बारे में जो भी सुनता है वही दंग रह जाता है। दुनियाभर में नाम रोशन करने वाले मौसम वैज्ञानिक भी इस अजूबे का आज तक पता लगाने में नाकाम रहे हैं। मंदिर के पुजारी कुड़हा प्रसाद शुक्ला की मानें तो अभी मानसून की भविष्यवाणी करने में एक सप्ताह का समय लगने की उम्मीद जताई गई है। इसकी वजह कि मंदिर का पत्थर करीब एक सप्ताह पहले भी चुका है, जिसमें अभी तक बूंदे नहीं आई हैं।
भीषण गर्मी में पत्थर पर बूंदे किसी चमत्कार की तरह
भगवान जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह के शिखर पर एख पत्थर लगा है। मान्यता है कि मई-जून के गर्मी के मौसम में पानी की छोटी-बड़ी बूंदे मानसून आने के करीब 20 दिन ही टपकने लगता है। इतना ही नहीं बारिश शुरू होने के बाद पत्थर पूरी तरह सूख जाता है। जगन्नाथ मंदिर की प्राचीनता के पुख्ता प्रमाण तो नहीं मिलते हैं।
इस मंदिर की दीवारें करीब 14 फीट तक मोटी बताई जाती हैं। मंदिर के भीतर भगवान जगन्नाथ बदलाऊ और बहन सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तिया स्थापित की गई है्ं। इतना ही नहीं मंदिर 11वीं सदी के होने के संकेत भी मिलते हैं।