नई दिल्ली- यूरोपीय संसद ने मणिपुर हिंसा को लेकर नरेंद्र मोदी की आलोचना की हौ सांसद ने आवाहन किया कि हिंसा को जल्द से जल्द रोका जाए इसे लेकर भारत सरकार ने ईयू पर पलटवार किया है।
पिछले 2 महीने से हिंसा झेल रहे मणिपुर को लेकर यूरोपिय यूनियन के स्थिति को लेकर संसद में बुधवार को एक प्रस्ताव पेश किया गया। जिसे भारत सरकार ने खारिज कर दिया है भारत सरकार का कहना है कि मणिपुर का मुद्दा भारत के लिए एक आंतरिक मुद्दा है भारत का कहना है। कि यूरोपीय संसद में प्रस्ताव पर बहस भारत के मणिपुर हिंसा पर अपना रुख स्पष्ट करने के बावजूद हो रही है।
यूरोपीय संसद में 12 जुलाई को 6 संसदीय जालौर ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें मणिपुर हिंसा को न रोक पाने के लिए मोदी सरकार और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के आलोचना की गई थी प्रश्नों में हिंसा की निंदा करते हुए। ईयू ने शीघ्र अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वह स्थिति में सुधार के लिए भारत से बात करें। मणिपुर में 3 मई को हिंसा भड़की थी। जिसमें अब तक कम से कम 142 लोगों की हत्या हो चुकी है। और 54,000 लोग पूरी तरह से अस्त-व्यस्त और मजबूर हो गए है।
भारत ने यूरोपीय के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए विदेश सचिव विनय मोहन ने कहा कि मणिपुर की स्थिति पर भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। और यूरोपीय संसद से भी इस संबंध में बात की है। बावजूद इसके यूरोपीय संसद में इस प्रस्ताव को पेश किया गया है।
उन्होंने कहा यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है हम यूरोपीय संसद में होने वाली घटनाओं से अवगत है हमने इस मामले से संबंधित यूरोपीय संसद के सदस्यों से संपर्क भी किया है हमने यह पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है। कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है।
विदेश सचिव ने हालांकि मणिपुर अखबार में छपी एक रिपोर्ट पर टिप्पणी करके उसे इनकार कर दिया है जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार ने यूरोपीय संसद के सदस्यों से बात करने के लिए एक फॉर्म को काम पर लगाया है रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत सरकार ने यूरोपीय के सांसदों से मणिपुर हिंसा पर बात करने के लिए स्थिति एवं प्रमुख हायर किए थे जिसने कथित तौर पर यूरोपीय संसद के सदस्यों को भारत सरकार की तरफ से एक पत्र भेजा गया था।
बता दें कि मणिपुर हिलसा 3 मई को उस वक्त भड़की जब प्रदेश की बहुसंख्यक समुदाय की जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ बड़ी संख्या कुर्की 8 जनजाति समुदायों ने एक रैली निकाली थी।