नई दिल्ली- जुलाई की शुरुआत में महाराष्ट्र में शुरू हुआ सियासी ड्रामा थम नहीं रहा है। एनसीपी से बगावत के बाद अजित पवार लगातार तीन दिन से चाचा शरद पवार से मुलाकात कर रहे हैं। प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि एनसीपी के विधायक शरद पवार साहेब का आशीर्वाद लेने के लिए आए थे। हमने उनसे अपील की है। कि पार्टी एक साथ रहनी चाहिए।
हमारी पौराणिक कथाओं में इच्छा मृत्यु का जिक्र है। महाभारत में यह वरदान पितामह भीष्म को मिला था। इसी वरदान के सहारे वह बुढ़ापा में भी हस्तिनापुर की सत्ता के वर्तमान और भविष्य के बीच खड़े थे। लिहाजा जो हुआ वह इतिहास है। लेकिन इस इतिहास की झलक वर्तमान के सत्ता संघर्ष में अक्सर दिख जाती है। महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा ही कुछ चल रहा है एनसीपी नेता शरद पवार 83 साल के हो चुके हैं। बड़े ही नाटकीय ढंग से वह लगातार अपनी पार्टी के चीफ बने हुए उम्र ढल चुकी है। सेहत भी साथ नहीं देती है।
लेकिन बीते दिनों जब अजित पवार ने एक मंच से कहा था कि आप बुजुर्ग हो चुके हैं। सिर्फ आशीर्वाद दें। तो चाचा शरद पवार ने भी दूसरे मंच से पलटवार करते हुए कहा था। इज जस्ट नंबर उम्र महज एक संख्या है और मैं अपने संगठन को फिर से स्थापित कर लूंगा। कई लोग मेरा कई बार साथ छोड़ कर जा चुके है। यह स्थिति मेरे लिए नहीं नहीं है।
मीडिया के सामने यह बात करने में शरद पवार का वॉल्यूम तो थोड़ा तेज था। लेकिन इस वॉल्यूम का सपोर्ट करने के लिए जरूरी जोश खरोश आवाज में नहीं था। क्या इसके पीछे की वजह व राजनीतिक सच्चाई हो सकती है। जो किसी से छिपी नहीं। और शरद पवार से तो खासतौर पर नहीं।
यह सच्चाई है कि महाराष्ट्र की राजनीति में हल्के पढ़ रहे एनसीपी के दबदबे की अजित पवार के जाने से होने वाले नुकसान की और संगठन में कद्दावर नेताओं की जो कमी हो गई उसकी भी इन सारी बातों को जानने के लिए जरूरी कि एनसीपी और शरद पवार की 25 साल के इतिहास को एक सरसरी निगाहों से देख लिया जाए। और बीते दिनों घटे हर घटनाक्रम के सियासी मायने परखा जाए।