नई दिल्लीः भारत में लंबे समय से नागरिकता संशोधन कानून(सीएए) की चर्चा हो रही है, जिसे लेकर गांव से लेकर शहरों तक प्रदर्शन भी हुए हैं। देश में एक तबका ऐसा भी है जो इस कानून का लगातार विरोध कर रहे है। अब उम्मीद है कि सरकार इस कानून को जल्द लागू करने जा रही है, जिसका एक केंद्रीय मंत्री ने दावा भी कर दिया है।
केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने पश्चिम बंगाल में इस कानून को लेकर बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि इस कानून को 7 दिन के भीतर ही लागू कर दिया जाएगा। पश्चिम बंगाल ही नहीं यह कानून देशभर में लागू किया जाना है।
मंत्री के दावे के बाद एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है, जिसके पक्ष और विपक्ष में लोग अलग-अलग तर्क दे रहे हैं। आज आपको हम सीएम से संबंधित जरूरी बातें बताने जा रहे हैं। इस कानून से देशभर में क्या बदलाव होंगे और इसकी आपत्ति की वजह क्या है।
कुछ लोग बता रहे धार्मिक भेदभाव
नागरिक संशोधन कानून को कुछ लोग भेदभाव से भरा हुआ बता रहे हैं। कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक समुदायों (हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी) को अवैध अप्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता देने का नियम बनाया गया है।
इसे मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे वे लोग इसका विरोध कर रहा है। कानून के विरोधियों का तर्क है कि सीएए कुछ धार्मिक समूहों का पक्ष लेकर और दूसरों को बाहर करके भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को कमजोर करने का काम करता है।
इसके साथ ही सीएए को अक्सर प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से जोड़ा जाता है। इसके अलावा आलोचना करने वाले को डर है कि संयुक्त होने पर ये मुसलमानों के बहिष्कार का कारण भी बन सकता है।
बड़ी संख्या में राष्ट्रविहीन हो सकते हैं लोग
नागरिकता संशोधन कानून लागू होने से मुस्लिमों को कई तरह के डर सता रहे हैं। अगर लोग नागरिकता के मानदंडों को पूरा करने में विफल रहते हैं और दूसरे देश की नागरिकता नहीं है तो सीएए और एनआरसी के लागू होने के बाद बड़ी संख्या में लोग राष्ट्रविहीन भी साबबित हो सकते हैं। इससे उन्हें देश में चल रही किसी भी तरह की सुविधा का फायदा नहीं मिल सकेगा।
देशभर में हुए थे विरोध प्रदर्शन
केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए सीएए कानून को लेकर देशभर में गली चाक चौराहों पर मुस्लिमों ने विरोध प्रदर्शन किया था। इसके साथ ही कुछ राजनीतिक पार्टियां भी मुस्लिम्स को इसमें शामिल करने की पैरवी कर चुकी हैं। पर कई लोगों ने भारत के सामाजिक ताने-बाने, समावेशिता और विविधता के सिद्धांतों को लेकर संभावित प्रभाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की जा चुकी है।