होली से पहले होलिका दहन की परंपरा है. होलिका दहन से पहले होलिका माता की पूजा की जाती है। होलिका दहन की प्रचलित कहानी के अनुसार, राक्षस राजा हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने अपने भतीजे प्रह्लाद को मारने की कोशिश में अपनी जान गंवा दी थी। तभी से आग में जली होलिका को बुराई का प्रतीक मानकर हर साल प्रतीकात्मक रूप से होलिका दहन किया जाता है, लेकिन इस प्रचलित कहानी के अलावा होलिका की प्रेम कहानी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। हिमाचल की लोक कथा के अनुसार होलिका ने अपने प्रेम के कारण अपनी जान की परवाह नहीं की। आइए जानते हैं होलिका की प्रेम कहानी।

प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था

राक्षस कुल के राजा हिरण्‍यकश्‍यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्‍यकश्‍यप प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न नहीं था इसलिए विष्णु भक्त होने के कारण हिरण्‍यकश्‍यप अपने पुत्र को दंडित करता था। समय बीतने के साथ ही हिरण्‍यकश्‍यप का धैर्य का बांध टूट गया, तो उसने प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। इस योजना को पूरा करने के लिए उसने अपनी बहन होलिका को अपने राज दरबार में आमंत्रित किया। होलिका का जल्द ही विवाह होने वाला था। इस कारण से भाई के बुलावे पर बहन बहुत प्रसन्न हुई।

आगे की कहानी

हिरण्यकश्यप की बातें सुनकर क्रोधित होलिका ने कहा कि उसकी जल्द ही शादी होने वाली है, इसलिए वह अपना नया जीवन शुरू करेगी और इस पाप में भागीदार नहीं बनेगी। जब हिरण्यकशिपु को होलिका के राजकुमार इलोजी के प्रति प्रेम के बारे में पता चला, तो उसने एक और चाल चली और होलिका को धमकी दी कि यदि वह प्रह्लाद के लिए चिता पर नहीं बैठेगी, तो वह होलिका के भावी पति को मार डालेगा। हिरण्यकश्यप की बातें सुनकर होलिका डर गई और प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठने के लिए तैयार हो गई।

इलोजी ने त्यागा सबकुछ

ऐसा माना जाता है कि होलिका के अग्नि में भस्म हो जाने के बाद इलोजी हिरण्यकशिपु के पास पहुंचे। जब उसे सारा वृत्तान्त मालूम हुआ तो वह पागलों की भाँति राख और लकड़ियाँ इधर-उधर फेंकने लगा। इलोजी अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे. कहा जाता है कि इसके बाद इलोजी ने अपना पूरा जीवन खानाबदोश की तरह जंगल में बिताया।

हिमाचल प्रदेश में आज भी करते है उन्हें याद

होलिका अपने प्रेमी इलोजी को बचाने के लिए प्रह्वाद के साथ अग्नि में बैठने को तैयार थी। प्रह्लाद को जलने से बचाने के लिए अग्निदेव ने जो कपड़ा दिया था, वह प्रह्लाद से नहीं लिया गया था। यानी प्रेम और स्नेह को सबसे ऊपर रखते हुए होलिका ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. इसीलिए आज भी हिमाचल प्रदेश में लोग उन्हें प्रेम की देवी के रूप में याद करते हैं। आज भी हिमाचल के लोग होलिका से जुड़ी कई कहानियां आने वाली पीढ़ियों को सुनाते हैं।