होली मुख्य रूप से हिंदुओं का त्योहार है, लेकिन अब इसे अन्य धर्मों के लोग भी मनाने लगे हैं। इतिहासकारों का मानना है कि होली का चलन कई सालों से चला आ रहा है और इस त्योहार का जिक्र कई जगहों पर मिलता है. मुगल काल में होली बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती थी। लेकिन मुगल काल में होली भी ईद की तरह खुशी-खुशी मनाई जाती थी। इतिहास में अकबर द्वारा जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर द्वारा नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। चलिए जानते हैं कि मुगलों के दौर में होली कैसे खेली जाती थी.
शाहजहाँ के समय की होली
शाहजहाँ के समय में होली खेलने की मुग़ल शैली बदल गई थी। कहा जाता है कि उस काल में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी यानी रंगों की बौछार के नाम से जाना जाता था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के समय में उनके मंत्री होली पर उन्हें रंग लगाने जाते थे। खबरों की मानें तो उस जमाने में फूलों से रंग बनाए जाते थे। इत्र की खुशबू से महकते फव्वारे चलते थे।
बादशाह होली के लिए करते थे ये काम
इतिहासकारों के मुताबिक मुगल बादशाह होली के लिए अलग से रंग तैयार करवाते थे। बहुत समय पहले टेसू के फूलों को इकट्ठा करके पानी में उबाला जाता था, ठंडा किया जाता था और तालाबों में भर दिया जाता था। बादशाह के हरम में भी तालाब फूलों के रंगों और गुलाब जल से भरे रहते थे। सुबह से ही होली का त्योहार शुरू हो जाता था. पहले राजा अपनी पत्नी के साथ होली खेलते थे, फिर आम जनता के साथ।










