Toll Tax Rule: अगर आप भी घूमने के शौकीन हैं और टोल टैक्स पर लगने वाली लंबी लाइनों से परेशान हो जाते हैं, तो अब लागू हो रही यह नई व्यवस्था आपकी यात्रा को आसान बना देगी। दरअसल GNSS यानी ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम एक ऐसी तकनीकी व्यवस्था है जो सैटेलाइट की मदद से ट्रैक करेगी कि आपके वाहन ने नेशनल हाईवे पर कितनी दूरी तय की है। उसी आधार पर टोल की रकम तय होगी यानी अब जितनी दूरी, उतना ही टोल टैक्स देना होगा। इसे 1 मई 2025 से पूरे देश में लागू किया जा रहा है। पहले इसे कुछ हाईवे पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया जाएगा। फिर धीरे-धीरे इसे पूरे देश में फैलाया जाएगा।

बिलकुल सही कहा आपने! GNSS आधारित टोल प्रणाली भारत में टोल वसूली के तरीके में एक बड़ा बदलाव लेकर आ रही है। यह न केवल सफर को सुविधाजनक बनाएगी, बल्कि टोल प्लाज़ा पर लगने वाली लंबी कतारों से भी निजात दिलाएगी।

इस नई व्यवस्था के कुछ प्रमुख फायदे:

  1. “पे-एज़-यू-गो” मॉडल – यानी जितनी दूरी तय, उतना ही टोल भुगतान।
  2. टोल प्लाज़ा की जरूरत नहीं – समय की बचत और ट्रैफिक जाम से राहत।
  3. ट्रांसपेरेंसी और कम भ्रष्टाचार – सैटेलाइट ट्रैकिंग से सही दूरी और शुल्क की गणना।
  4. FASTag के बाद अगला कदम – डिजिटल इंडिया की ओर एक और प्रगति।

आपका इस विषय में क्या नजरिया है? क्या आप मानते हैं कि इससे आम यात्रियों को राहत मिलेगी?

ऐसे करेगा काम

वाहन में एक ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या डिवाइस लगाई जाएगी। यह एक GPS ट्रैकर जैसी डिवाइस होगी जो आपके वाहन में फिट की जाएगी। सैटेलाइट के जरिए आपके वाहन की हरकत पर नजर रखी जाएगी। हाईवे पर आप जितनी दूरी तय करेंगे, उतनी रकम आपके डिजिटल वॉलेट या अकाउंट से कट जाएगी।

इसमें कोई फ्लैट चार्ज नहीं है, आपको सिर्फ रूट का भुगतान करना होगा। यात्रा पूरी होते ही टोल अपने आप कट जाएगा। यह सिस्टम प्रीपेड और पोस्टपेड दोनों विकल्पों को सपोर्ट करेगा। फास्टैग को धीरे-धीरे हटाया जाएगा। शुरुआती चरण में GNSS और फास्टैग दोनों एक साथ काम कर सकते हैं, लेकिन भविष्य में केवल GNSS सिस्टम ही काम करेगा।

इस सिस्टम से समय की बचत होगी और आपको टोल प्लाजा पर रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपको केवल उतनी ही दूरी का टोल देना होगा, जितनी दूरी आप तय करेंगे। इससे ट्रैफिक जाम से राहत मिलेगी और टोल बूथ पर लाइन में खड़े होने की जरूरत नहीं पड़ेगी।