4000 Years Old Gold: नारा हुडा की खोज भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की समझ को गहराई से प्रभावित करती है। यह स्थल न केवल ताम्र-पाषाण युग के प्रमाण प्रदान करता है, बल्कि इसके साथ-साथ लौह युग और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल की झलक भी दिखाता है। इस खोज के प्रमुख बिंदु ये हैं:

 स्थान और खुदाई का क्षेत्र:

नारा हुडा, भुवनेश्वर से 30 किमी दूर तिरीमल गांव के पास।

2 एकड़ में फैली खुदाई, 4-5 मीटर मोटी सांस्कृतिक परत।

 तीन सांस्कृतिक युगों के प्रमाण:

ताम्र-पाषण युग(2000–1000 ईसा पूर्व): पत्थर, तांबा, हड्डी के औजार, खेती और पशुपालन के प्रमाण।

लौह युग (1000–400 ईसा पूर्व): लोहे के औजार, नई वास्तुकला और बर्तनों की शैली।

प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (400–200 ईसा पूर्व): परिपक्व सामाजिक और तकनीकी विकास के संकेत।

तांबे, पत्र और हड्डियों के औजार।

मिट्टी की मूर्तियां, मालाएं, चूड़ियों के टुकड़े।

गोलाकार मिट्टी के घर, पोस्ट होल्स।

खिलौना गाड़ी के पहिए – बच्चों की संस्कृति का संकेत।

जल प्रबंधन और भूगोल:

गंगहारा और प्रसन्ना नदियों के बीच बसी बस्ती।

प्राकृतिक खाई और जल संरक्षण प्रणाली – 4000 साल पुरानी जल प्रबंधन तकनीक का प्रमाण।

ऐतिहासिक महत्त्व:

यह स्थल ओडिशा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कड़ी जोड़ता है।

यह पहली बार है जब ओडिशा के किसी स्थल पर तीन युगों के स्पष्ट साक्ष्य मिले हैं।

दुनिया भर के पुरातत्वविदों की रुचि का केंद्र बन चुका है।

1. बस्ती का नियोजन और वास्तुकला:

खुदाई में पाए गए गोलाकार घर उस समय की स्थायी बस्ती का प्रमाण हैं।

पोस्ट होल्स (लकड़ी के खंभों के लिए गड्ढे) यह दर्शाते हैं कि घरों की छतें लकड़ी और पत्तों से बनी होती थीं।

मिट्टी की दीवारें और चूल्हों के अवशेष बताते हैं कि खाना पकाने और रहने की जगह अलग-अलग थी।

2. जीवनशैली और संस्कृति:

खिलौना गाड़ी के पहिए यह साबित करते हैं कि बच्चों के लिए खिलौने बनाए जाते थे – एक विकसित सामाजिक जीवन का संकेत।

मालाएं, चूड़ियों के टुकड़े और कीमती पत्थर यह दिखाते हैं कि लोग आभूषण पहनते थे, और शायद व्यापार भी होता था।