Bihar holi special: आपने बिहार में कुर्ता फाड़ होली का ज़िक्र तो सुना ही होगा। एक समय पहले बिहार में कुर्ता फाड़ होली काफी ट्रेंड था। आम लोगों से लेकर राजनीतिक गलियारों तक कुर्ता फाड़ होली खेली जाती थी। आज हम बिहार के एक अनोखी होली के बारे में बताने जा रहा है जिसका नाम है छाता होली।

रंग–बिरंगे छातों के साथ मनाई जाती है होली
बिहार के समस्तीपुर जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित धमौन गांव है। जहां होली के लिए इस गांव के प्रत्येक टोले में बांस के विशाल, कलात्मक छाते बनाए जाते हैं । पूरे गांव में बने 30 – 35 छातों को रंगीन कागज तथा घंटियों से सजाया जाता है। होली की सुबह इन छातों के साथ सभी ग्रामीण अपने कुल देवता निरंजन मंदिर में एकत्रित होकर अबीर – गुलाल चढ़ाते हैं और ढ़ोल – हारमोनियम की लय पर “धम्मर” और “होली” गाते हैं।
होली के एक महीने पहले से ही छाता बनाने की होती है तैयारी
बिहार में समस्तीपुर के शाहपुर पटोरी अनुमंडल के धमौन का नाम धौम्य ऋषि के नाम पर पड़ा है। करीब एक महीने पहले से चलने वाली तैयारी का होली के दिन प्रदर्शन होता है। एक छतरी बनाने में कम से कम पांच हजार का खर्च आता है। आकर्षक बनाने के लिए रंगीन कागज, थर्मोकोल, घंटी और डिजाइनर पेपर का इस्तेमाल होता है। आंकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन कुछ बुजुर्गों का कहना है कि यह होली लगभग सौ वर्ष पूर्व से मनाई जाती रही है। कुछ का यह भी कहना है कि इस प्रकार की होली 16वीं शताब्दी से मनाई जा रही है। किंतु छतरियों को नया रूप लगभग 1930 में दिया गया।
ऐसे मनाई जाती है धमौन में होली
होली की सुबह छतरियों के साथ ग्रामीण अपने कुल देवता स्वामी निरंजन मंदिर में एकत्र होकर अबीर-गुलाल चढ़ाते हैं। वहां ‘धम्मर’ और ‘फाग’ गाते हैं। मंदिर परिसर में छतरी मिलन होता है। घंटियों से पूरा इलाका गूंज उठता है। इसके बाद यह शोभायात्रा के रूप में परिवर्तित होकर खाते-पीते घर-घर पहुंचती है। देर शाम झांकियां महादेव स्थान पहुंचती हैं। वहां लोग मध्य रात्रि के बाद चैता गाते हुए होली का समापन करते हैं।










