नई दिल्ली: भारतीय स्टेट बैंक की बात करें तो वैश्विक मंदी की उम्मीद मिलने के साथ ही विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक दरों में कमी होने जा रही है। नीति निर्माताओं में अर्थव्यवस्था और नुकसान पहुंचाने के साथ महंगाई पर नियंत्रण करने की जरुरत है। पूंजी की उच्च लागत मिलने के बाद और प्रवेशकों की तुलना में स्थापित बाजार के खिलाड़ियों को लेकर प्रतिस्पर्धी परिदृश्य पर असर डालना शुरु हो जाता है।
इक्विटी और बॉन्ड के बीच कम होने की है उम्मीद
एसबीआई ने जानकारी दिया है कि वास्तव में बात करें तो 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट एकदम अलग माना जा रहा है। जब सभी केंद्रीय बैंकों ने एक साथ दरों में कटौती करना शुरु हो गया था, लेकिन जुड़े हुए देशों में केंद्रीय बैंकों ने अलग के साथ आसान मौद्रिक नीति से बाहर निकालने को लेकर फैसला हो चुका है। आर्थिक चक्र के धीमा होने की वजह से इक्विटी और बॉन्ड के बीच संबंध कम होने की भी उम्मीद लगाई जा रही है।
निवेशकों को मिलने वाली है चुनौती
निवेशकों की तरफ से चुनौतियों में बढ़त हो सकती है। जब बॉन्ड की कीमतों के अलावा इक्विटी की कीमतों में गिरावट हो जाती है। चालू वर्ष को लेकर आवंटन एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र माना जा रहा है, क्योंकि सरकारी बॉन्ड की बात करें तो प्रतिफल बियरिश मार्केट के दौरान निवेशकों से होने वाले नुकसान की भरपाई करने की क्षमता करना अहम होता है।
निवेशक छोटी अवधि के अलावा लंबी अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों से प्राप्त प्रतिफल को लेकर तुलना करने के साथ इक्विटी बाजारों में परिसंपत्ति आवंटन को लेकर चयन करना होता है।
साल 2022 में भारतीय बाजारों का इस मामले में बेहतर रहा है प्रदर्शन
एसबीआई ने जानकारी दिया है कि भारतीय इक्विटी बाजार 2022 में अस्थिर माना जा रहा था, लेकिन आंकड़ों की बात करें तो बारीक नजर डालने से समझा आ जाता है कि रिटर्न और अस्थिरता को लेकर उन्होंने सापेक्ष पैमाने पर शानदार प्रदर्शन किया है।